देश का मान बडाने वाले पहलवानों से क्यो बेगानी हो गयी सरकार।

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जिन पहलवानों ने देश और दुनिया में अपने दमखम से दूसरे देशों के पहलवानों को धूल चटाई हो, उन्हीं पहलवानों की आंखों में आज आंसू नजर आ रहे हैं, कहीं उनको अपनी बात रखने के लिए लाठियां खानी पड़ रही है तो कहीं अपने अधिकार के लिए धरना देना पड रहा है, यही नहीं जब सत्ता के हुक्मरानों ने इन पहलवानों की ना सुनी तो इन पहलवानों ने गंगा के घाट पर अपनी सालों की मेहनत का फल और देश को दिलाये गये सम्मान को गंगा में प्रवाहित करने का निर्णय ले लिया, एक खिलाड़ी के लिए जो मेडल उसके जीवन की सबसे बडी उपलब्धि होती है, उसे त्यागने का निर्णय ही उसके दिल को झकझोर देता है, लेकिन यहां देश के पहलवानों की सरकार सुनने के मूड में नहीं है।
ये वो पहलवान हैं जिन्होंने कभी बड़े से बड़े पहलवानों को धरती में पटक कर रख दिया, अपने दमखम से सामने वाले को एसी पटकनी दी की वो चित्त हो गया, इसी दमखम की बदौलत दुनिया भर में भारतीय तिरंगा लहराया और देश के लिए गोल्ड मेडल तक जीतकर देश का गौरव भी बढ़ाया, दुनिया भर के पहलवानों को धूल चटाने वाले पहलवान आज खुद धूल में मिलते हुए दिखाई देते हैं और आंखों में आंसू लिए अपने उसी गौरवमयी जीत के मेडल्स को गंगा में बहाने को मजबूर है, खिलाड़ियों ने शोषण का आरोप लगाकर भाजपा सरकार पर निशाना तो साथ लिया लेकिन ये वही सरकार है जो बेटियों के लिए मंचों पर बडे बडे नारे लगाती है,
तो फिर आज बेटियों की लाठियों के बीच की चीख पुकार और दर्द की आह आखिर सरकार को क्यों नहीं सुनाई दे रही है, क्या वास्तव में सरकार बेरहम है या फिर अपनी राजनीतिक गोटियों की सेटिंग ना खराब हो जाए िसके लिए देश की शान और देश का मान बढ़ाने वाले पहलवानों को शहीद किया जा रहा है, बहरहाल जो भी हो लेकिन पहलवानों की ना तो सरकार ने कोई मांग ही सुनी और ना ही कोई न्याय मिला, मिला तो सिर्फ लाठी डंडों का सम्मान, अब एसे में पहलवानों ने हरिद्वार गंगा घाट पर मेडल्स बहाने का जो निर्णय लिया है वो बेहद ही गम्भीर है, फिलहाल किसान नेता के आश्वासन पर पांच दिनों के लिए पहलवानों ने मेडल्स बहाने के निर्णय को टाल दिया है, लेकिन दुनिया को धूल चटाने वाले पहलवान आज आंखों में आंसू लेकर धूल में मिलते दिखाी दे रहे हैं, जो देश के खिलाडियों और उनके सम्मान के लिए एक बडा सवाल है।

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