ब्रेकिंग:-हरीश-किशोर में वार पलटवार,अब हरीश रावत ने दिया किशोर उपाध्याय को जवाब

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यूँ तो राजनीति में यह माना जाता है कि जब कोई दल विपक्ष में होता है तो उसके सभी गुट मिलकर चुनाव लड़ते है और संगठन के लिए काम करते हैं,परन्तु इन दिनों राजनीति का परिदृश्य पूरी तरह से बदल गया है।2022 विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में प्रदेश स्तर पर गुटबाजी खुलकर सामने आ रही है।पिछले दिनों कॉंग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और कभी हरीश रावत के करीबी माने जाने वाले किशोर उपाध्याय ने खुलकर हरीश रावत हमला बोलते हुए कहा था कि “मुझे षड्यंत्र के तहत सहसपुर से चुनाव लड़ाया गया”,इसके अलावा भी उन्होंने हरीश रावत पर बहुत से सवाल खड़े किए।किशोर उपाध्याय द्वारा लगाए गए आरोपो पर अब हरीश रावत ने जवाब दिया है हरीश रावत ने किशोर उपाध्याय को जवाब देते हुए फेसबुक में लिखा है कि मेरे एक अनन्य सहयोगी ने बहुत बार ये सार्वजनिक चर्चा छेड़ी है कि उन्हें उनके न चाहते हुए भी षड्यंत्रपूर्वक सहसपुर से चुनाव लड़ाया गया और यह घटनाक्रम 2017 के विधानसभा चुनाव का है। टिहरी जहां से वो लड़ते रहे हैं, उस सीट से कांग्रेस पार्टी ने अंतिम दम पर उनकी संस्तुति पर ही उम्मीदवार तय किया और लड़ाया। टिहरी के लोग बड़ी संख्या में आए भी, PCC में उपवास भी रखा और हमने पी.सी.सी. में जाकर के घोषणा की कि अब भी यदि वो मानते हैं तो हमें बड़ी खुशी होगी कि वो टिहरी से लड़ें।क्योंकि पार्टी उनको टिहरी के नेता के रूप में आज भी देखती है, पहले भी देखती रही है। निर्णय हमारे साथी का था, जब वो 2017 का चुनाव ऋषिकेश से लड़ना चाहते थे, सबने उनके इस संकेत का भी स्वागत किया। फिर डोईवाला, रायवाला का भी उन्होंने आंकलन किया। स्क्रीनिंग कमेटी में सारे सदस्यों के सामने उन्होंने अपने परिवार के लोगों से पूछा कि मुझे कहां से लड़ना चाहिये और जब उधर से सुझाव आया कि सहसपुर से आप लड़िये तो उनके कहने के बाद ही स्क्रीनिंग कमेटी ने सहसपुर से उनका नाम फाइनल किया। अब यह षड्यंत्र न जाने कितना बड़ा हो गया है।ऐसा लगता है कि 2016-17 में हम और कुछ नहीं कर रहे थे, केवल उनके खिलाफ षड्यंत्र ही कर रहे थे। जब हम आगे बढ़ते हैं, तो उसमें बहुत सारे लोगों का हाथ होता है, सहयोग होता है, उन सबको षड्यंत्री समझ लेना कहां तक न्याय संगत है, इस पर लोग जरूर विचार करेंगे और मुझे दु:ख है कि बार-बार यह कहने से नुकसान हम ही को हो रहा है “कद्दू, छूरी में गिरे या छूरी, कद्दू में गिरे” नुकसान हमारा अपना ही है। मगर राजनीति के अंदर यदि आप मीठा सुन सकते हैं तो कभी-कभी कड़वा भी सुनना पड़ता है। देखते हैं, कहां तक संयम साथ देता है!


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