उत्तराखंड: 22 वर्षों बाद अब पूरा होगा राज्य आंदोलनकारियों के आरक्षण का सपना! होंगे चार बड़े फायदे

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उत्तराखंड में पिछले करीब 22 वर्षों के उतार-चढ़ाव के बाद अब राज्य आंदोलनकारियों को सीधी भर्ती के पदों पर 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण का सपना मुकाम तक पहुंच जाएगा। कैबिनेट से मंजूर विधेयक विधानसभा में पारित होने के बाद जब कानून बनेगा तो इसे 2004 से लागू करने से चार बड़े फायदे होंगे। नैनीताल उच्च न्यायालय से आंदोलनकारियों को क्षैतिज आरक्षण देने वाले शासनादेश के रद्द होने के बाद राज्य में इस व्यवस्था के तहत सरकारी विभागों में नौकरी कर रहे करीब 1700 कर्मचारियों को बड़ी राहत मिलेगी। राज्य आंदोलनकारी क्रांति कुकरेती कहते हैं, अदालत में शासनादेश रद्द होने के बाद 2018 में प्रदेश सरकार ने इसकी अधिसूचना जारी कर दी थी। इससे आंदोलनकारी कोटे से नौकरी में लगे कर्मचारियों की नौकरी को संरक्षण देने वाला कोई नियम अब मौजूद नहीं है।

राज्य आंदोलनकारियों और आश्रितों को 10% क्षैतिज आरक्षण का बिल मंजूर
2-करीब 300 अभ्यर्थियों की नौकरी मिलेगी
क्षैतिज आरक्षण का शासनादेश रद्द होने के बाद करीब 300 ऐसे अभ्यर्थी हैं, जिनका आंदोलनकारी कोटे से लोक सेवा आयोग और अधीनस्थ चयन आयोग से चयन हो चुका है। लेकिन नियम न होने की वजह से उन्हें नियुक्ति नहीं दी जा सकी।

3.लटके परीक्षा परिणाम घोषित हो सकेंगे
कई ऐसे अभ्यर्थी हैं जिनके प्रतियोगी परीक्षाओं के परिणाम संस्थानों ने इसलिए जारी नहीं किए कि आरक्षण का शासनादेश रद हो गया था। 2004 से आरक्षण का लाभ मिलने से ऐसे अभ्यर्थियों के परिणाम जारी होने की उम्मीद है।

4. नौकरियों में आरक्षण का रास्ता खुलेगा
सबसे बड़ा फायदा राज्य के चिन्हित आंदोलनकारियों और उनके आश्रितों को होगा, जो वर्षों से इसके लिए संघर्ष कर रहे हैं।

प्रदेश में 13000 चिन्हित आंदोलनकारी
राज्य में चिन्हित राज्य आंदोलनकारियों की संख्या करीब 13000 है। कानून बनने के बाद क्षैतिज आरक्षण का लाभ इन हजारों राज्य आंदोलनकारियों या उनके आश्रितों को मिलेगा।
6000 आवेदन जिलों में लटके
चिन्हित राज्य आंदोलनकारी की मान्यता देने के लिए सभी 13 जिलों में करीब 6000 आवेदनों पर अभी तक निर्णय नहीं लिया जा सका है। राज्य आंदोलनकारी इसके लिए लगातार मांग कर रहे हैं। इनमें 300 आवेदन दिल्ली राज्य से हैं।

आंदोलनकारियों के आरक्षण का उतार-चढ़ाव
– नित्यानंद स्वामी की अंतरिम सरकार में राज्य आंदोलन के शहीदों के आश्रितों को सीधे नौकरी का आदेश
– 11 अगस्त 2004 को एनडी तिवारी सरकार ने घायलों और जेल गए लोगों को सीधे सरकारी सेवा में लेने और चिन्हित राज्य आंदोलनकारियों को 10 क्षैतिज आरक्षण देने का आदेश दिया
– निशंक सरकार चिन्हित आंदोलनकारियों और उनके आश्रितों को क्षैतिज आरक्षण के दायरे में लाई
– नौ मई 2010 को करुणेश जोशी की याचिका पर हाईकोर्ट ने घायलों और जेल गए आंदोलनकारियों को सीधे नौकरी देने वाला शासनादेश निरस्त किया
– 20 मई 2010 में बनाई गई सेवा नियमावली के खिलाफ करुणेश जोशी ने पुनर्विचार याचिका की
– 7 मार्च 2018 को कोर्ट ने क्षैतिज आरक्षण का शासनादेश और सेवा नियमावली को निरस्त कर दिया
– 2015 में हरीश सरकार क्षैतिज आरक्षण का विधेयक लेकर आई, जो राजभवन में सात वर्ष तक लंबित रहा
– मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के अनुरोध पर राज्यपाल ने विधेयक को वापस भेजा
– अब सरकार ने दोबारा से नया विधेयक बनाकर कैबिनेट से पारित कराया


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