उत्तराखंड की वन रेंजों में अफसरों का टोटा! शासन में धूल फांक रही प्रमोशन की फाइल

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उत्तराखंड वन विभाग में कर्मचारी लंबे समय से पदोन्नति का इंतजार कर रहे हैं। जबकि प्रदेश में वन क्षेत्राधिकारियों का भारी कमी से कार्य प्रभावित होता है.शासन स्तर से फाइल को हरी झंडी ना मिलने से इस पर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है। वहीं डिप्टी रेंजर्स को रेंजर में प्रमोट करने के लिए कैबिनेट की मंजूरी लेनी आवश्यक है।

उत्तराखंड के ऐसे कई वनक्षेत्र हैं जहां तैनाती के लिए अफसर ही नहीं मिल पा रहे हैं। दरअसल ऐसा इसलिए है क्योंकि राज्य में वन क्षेत्राधिकारियों का भारी टोटा है। खास बात यह है कि इसी समस्या के समाधान के लिए करीब 1 साल पहले पत्रावलियां चलाई गईं लेकिन इतने समय बाद भी शासन स्तर पर कोई अंतिम निर्णय नहीं ले पाया। हालांकि डिप्टी रेंजर्स को रेंजर में प्रमोट करने के लिए इस प्रकरण में कैबिनेट की भी मंजूरी ली जानी होगी। शासन में ऐसी कई फाइलें हैं जो सालों साल तक नहीं निपटाई गई हैं। उत्तराखंड वन विभाग की भी एक ऐसी ही फाइल है, जिस पर वन महकमा नजरें टिकाए बैठा है। मामला डिप्टी रेंजर्स के रेंजर्स में प्रमोशन से जुड़ा है। हालांकि यह कोई सामान्य प्रकरण नहीं है, क्योंकि इस मामले में सीधी भर्ती के वन क्षेत्राधिकारी के पदों को प्रमोशन से भरे जाने का प्रयास हो रहे हैं। ऐसा वन विभाग की उन पत्रावलियों से समझा जा सकता है। जिसमें उत्तराखंड वन विभाग की खाली पड़ी रेंजों को इस संकट से उबारने के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा गया है। हैरानी की बात यह है कि पूर्व पीसीसीएफ हॉफ विनोद कुमार सिंघल ने अपने कार्यकाल के दौरान अगस्त 2022 में वन क्षेत्राधिकारियों के सीधी भर्ती के 72 पदों के सापेक्ष उपवन क्षेत्राधिकारियों यानी डिप्टी रेंजर्स की पदोन्नति का प्रस्ताव दिया था। जिसको लेकर समय-समय पर पत्र लिखकर हॉफ ने शासन को प्रकरण की याद दिलाने की भी कोशिश की। लेकिन पिछले करीब 1 साल में इस मामले को लेकर फाइल शासन में ही धूल फांक रही हैं।

दरअसल वन सेवा नियमावली 2010 में वन क्षेत्राधिकारी के 308 पद स्वीकृत हैं। इन पदों को 50% सीधी भर्ती और 50% पदोन्नति के जरिए भरे जाने का प्रावधान है। सीधी भर्ती के स्वीकृत 154 पदों में से केवल 81 पद पर ही वन क्षेत्रअधिकारी कार्यरत हैं जबकि 73 पद खाली पड़े हैं, जाहिर है कि इस स्थिति में उत्तराखंड की कई रेंज या तो खाली पड़ी हैं या फिर एक ही अधिकारी को कई चार्ज दे दिए गए हैं। उधर हाल ही में जंगलों के अवैध कटान मामले में भी कई अधिकारी सस्पेंड कर दिए गए हैं। यानी खाली पड़ी रेंज की संख्या लगातार बढ़ रही है। इन्हीं विकट स्थितियों से निपटने के लिए वन विभाग ने सीधी भर्ती के खाली पदों पर उपवन क्षेत्राधिकारियों के प्रमोशन का सुझाव दिया था और वन टाइम प्रमोशन की पत्रावली शासन में चली थी। हालांकि वन क्षेत्राधिकारी पद के लिए सीधी भर्ती करने हेतु 46 पदों पर पूर्व में अधियाचन भेजा गया था, जिस पर कार्रवाई हो रही है। जबकि बाद में 24 पदों पर भी अधियाचन भेजा गया। वन विभाग का मानना है कि इस भर्ती को करवाने में वक्त लगेगा और वन विभाग को करीब 3 साल बाद यह अधिकारी मिल पाएंगे। तब तक कई मौजूदा वन क्षेत्र अधिकारी सेवानिवृत हो जाएंगे। ऐसे में वन टाइम प्रमोशन की व्यवस्था करते हुए उपवन क्षेत्र अधिकारियों को वन क्षेत्र अधिकारी के रूप में प्रमोशन दिया जाए। इस पत्रावली पर शासन में लंबे समय से कार्रवाई का इंतजार किया जा रहा है। क्योंकि यह विशेष व्यवस्था के तहत प्रमोशन होने हैं। लिहाजा इसके लिए कैबिनेट की भी मंजूरी ली जाएगी। लेकिन उससे पहले जरूरी है कि शासन स्तर पर इस फाइल को तेजी से आगे बढ़ाया जाए। इस मामले में वित्त और न्याय विभाग का भी सुझाव और मंजूरी लेनी होगी जबकि इस पर अंतिम मुहर कैबिनेट को लगानी है। लेकिन यह सब तभी होगा जब शासन स्तर पर वन क्षेत्र में अधिकारियों की कमी के मामले को गंभीरता से लेकर इस फाइल पर भी गंभीरता दिखाई जाए। हालांकि इस मामले को लेकर वन मंत्री सुबोध उनियाल गंभीर दिखाई देते हैं और वन क्षेत्र में वन क्षेत्राधिकारियों की कमी को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास करने की भी बात कहते हैं।


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