ऐतिहासिक विरासत के साथ प्राकृतिक सौंदर्यता के लिए भी जाना जाता है अल्मोड़ा

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अल्मोड़ा। ऐतिहासिक विरासत के साथ-साथ प्राकृतिक सौंदर्यता के लिए जाना जाने वाला शहर अल्मोड़ा राज्य ही नहीं बल्कि देश-विदेशों में भी अपनी अलग पहचान रखता है। यहां एक ओर चन्दकालीन किले तथा मंदिर हैं, तो वहीं दूसरी ओर ब्रिटिशकालीन चर्च तथा पिकनिक स्थल भी उपस्थित हैं। अल्मोड़ा के इतिहास पर नजर डाली जाए तो स्कन्दपुराण के मानसखंड में कहा गया है कि कौशिकी (कोशी) और शाल्मली (सुयाल) नदियों के बीच में एक पावन पर्वत स्थित है। यह पर्वत और कोई पर्वत न होकर अल्मोड़ा नगर का पर्वत है। यह कहा जाता है कि इस पर्वत पर विष्णु का निवास था। कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि विष्णु का कूर्मावतार इसी पर्वत पर हुआ था। एक कथा के अनुसार यह कहा जाता है कि अल्मोड़ा की कौशिका देवी ने शुंभ और निशुंभ नामक दानवों को इसी क्षेत्र में मारा था। कहानियाँ अनेक हैं, परन्तु एक बात पूर्णतः सत्य है कि प्राचनी युग से ही इस स्थान का धार्मिक, भौगोलिक और ऐतिहासिक महत्व रहा है। स्थानीय परंपरा के अनुसार तिवारी अल्मोड़ा के सबसे पहले निवासियों में थे, जो कटारमल के सूर्य मंदिर में बर्तनों की सफाई के लिए रोज़ एक प्रकार की वनस्पति की आपूर्ति करते थे। प्राचीन ग्रंथों, जैसे विष्णु पुराण और स्कन्दपुराण में इस क्षेत्र में मानव बस्तियों के होने का वर्णन है। शक, नाग, किराट, खस और हुन जातियों को इस क्षेत्र की सबसे प्राचीन जनजातियों के रूप में श्रेय दिया जाता है। वहीं मान्यता है कि प्राचीन अल्मोड़ा कस्बा, अपनी स्थापना से पहले कत्यूरी राजा बैचल्देव के अधीन था। उस राजा ने अपनी धरती का एक बड़ा भाग एक गुजराती ब्राह्मण श्री चांद तिवारी को दान दे दिया। कत्यूरी राजाओं के समय में इसे राजपुर कहा जाता था। राजपुर नाम का बहुत सी प्राचीन ताँबे की प्लेटों पर भी उल्लेख मिला है। बताया जाता है कि अल्मोड़ा में चंदों के आगमन से पहले दो राजा नगर के दोनों छोरों पर स्थित दो किलों में रहते थे। नगर के दक्षिण में खागमरा नामक किला थाए जिसमें कत्यूरी राजा बैचल्देव उर्फ बैजलदेव का महल था। कत्यूरी राजाओं ने इस किले को नवीं शताब्दी में बनवाया था। राजा बैचल्देव का शासन बारामण्डल के कुछ इलाके तक ही था। वहीं नगर के उत्तर.पश्चिम में, एक पर्वत के अंत में, रेयलाकोट का किला था, जो कि पूर्वकाल में रेयला समुदाय के एक राजा का महल था। कहा जाता है कि इस महल में स्फटिक के खंभे फिट थे। अाज भी इस किले के खंडहर विद्यमान् हैं। रेयलाओं के वंशज अल्मोड़ा में चंदों के आने तक उपस्थित थे। वहीं आज के इतिहासकारों की मान्यता है कि सन् 1563 ई. में चन्द राजवंश के राजा बालो कल्याणचंद ने आलमनगर के नाम से इस नगर को बसाया था। चंदवंश की पहले राजधानी चम्पावत थी। कल्याणचंद ने इस स्थान के महत्व को भली-भाँति समझा। तभी उन्होंने चम्पावत से बदलकर इस आलमनगर (अल्मोड़ा) को अपनी राजधानी बनाया। सन् 1563 से लेकर 1790 ई. तक अल्मोड़ा का धार्मिक भौगोलिक और ऐतिहासिक महत्व कई दिशाओं में अग्रणीय रहा। इसी बीच कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक एवं राजनैतिक घटनाएँ भी घटीं। साहित्यिक एवं सांस्कृतिक दृष्टियों से भी अल्मोड़ा समस्त कुमाऊँ अंचल का प्रतिनिधित्व करता रहा। सन् 1790 ई. से गोरखाओं का आक्रमण कुमाऊँ अंचल में होने लगा था। गोरखाओं ने कुमाऊँ तथा गढ़वाल पर आक्रमण ही नहीं किया बल्कि अपना राज्य भी स्थापित किया। 1801 में काशीपुर ब्रिटिश राज के अंतर्गत आया था। 1814 में आंग्ल गोरखा युद्ध छिड़ने पर ब्रिटिश सेना ने काशीपुर में पड़ाव डाला था। 11 फरवरी 1815 को कर्नल गार्डनर के नेतृत्व में सैनिक काशीपुर से कटारमल के लिए रवाना हुए। आगे चलकर कर्नल निकोलस के अंतर्गत 2000 सैनिकों की टुकड़ी भी इनमें जुड़ गई। नेपाल से हस्तिदल शाह भी 500 गोरखा सैनिकों को लेकर अल्मोड़ा की रक्षा को निकल पड़ा। विनयथल नामक स्थान पर इन दोनों के मध्य लड़ाई छिड़ गई, जिसमें गोरखा कमांडर हस्तिदल और जयराखा वीरगति को प्राप्त हो गए। इसके बाद इस संयुक्त टुकड़ी ने निकोलस के नेतृत्व में 25 अप्रैल 1815 को अल्मोड़ा पर आक्रमण किया, और आसानी से कब्ज़ा कर लिया। 27 अप्रैल को अल्मोड़ा के गोरखा अधिकारी, बाम शाह ने हथियार डाल दिए, और कुमाऊँ पर ब्रिटिश राज स्थापित हो गया। सन् 1816 ई. में अंग्रेजो की मदद से गोरखा पराजित हुए और इस क्षेत्र में अंग्रेजों का राज्य स्थापित हो गया।


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